October 28, 2023

Futures and Options Buying Basics with Examples in Hindi 2023 | Futures and Options Glossary in Hindi

futures and options Buying Basics in Hindi 2023 | F&O महत्वपूर्ण शब्दावली

 

Future & Options Vocabulary with Trading Quick Start Guide

 

 

nifty option segment for trading

फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग कहाँ कर सकते है ?

Nifty50 index , Niftybank Index , Fiance nifty Index ( Finnifty) , Midcap Nifty  , Comodity  Sensex , Stock  जो (F&O) में शामिल है |

 

फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावली

 

Important Terminology Related to futures and options

अब हम Options के बारेमे अधिक जानकारी लेंगे जो आगे चलके आपको ऑप्शन ट्रेडिंग (Options Trading) के लिए काम आएगी |हम Nifty Options  को विस्तार से देखेंगे |

  • Index option contract इस प्रकार में  option contract का आधार (Base) index की Value होती है , जैसे की आज Nifty 50 इंडेक्स आज 16700 है, Nifty option को इसी Value के आधार से option contract  की कीमत या प्रिमियम बनता है |
  • निफ़्टी इंडेक्स जैसे कम ज्यादा होता है ,उस हिसाब से Options Premium में परिवर्तन (Change) होता है |
  • अगर निफ़्टी बढ़ता है तो Call Option बढ़ता है Put Option का भाव कम होता है |
    अगर निफ़्टी इंडेक्स कम होता है तो Put Option  बढ़ता है और Call Option का भाव कम होता है |

 

Future Contract क्या होता है ?

Future Contract is a agreement to buy or sell a specified quantity of an underlying asset ( stock / Index )  at a predetermined price and future date.

शेयर बाज़ार में आप स्टॉक खरीद कर रख सकते हैं लेकिन आप अगले कारोबारी दिन के लिए स्टॉक को पहले बेच नहीं सकते , अगर कोई न्यूज़ की वजह से थोड़े समय के लिए स्टॉक की कीमत जल्दी से निचे जा सकती है , ऐसे समय के लिए उसी स्टॉक का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट होते है जिसे आप स्टॉक से कम लागत में बेच सकते है और स्टॉक गिरते समय भी उसका फायदा उठा सकते है। फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में लॉट साइज फिक्स होता है , और कॉन्ट्रैक्ट ख़तम होने की तारीख भी तय होती है |

Underlying Asset- अंडरलाइन एसेट

असेट (जैसे, कमोडिटी, स्टॉक, इंडेक्स ) जिस पर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट आधारित होता है। The asset  upon which a futures contract is based.(उदाहरण के लिए  Commodities, Stocks, Index )

Margin मार्जिन 

फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट में प्रवेश करने के लिए या खरीदने के लिए आवश्यक प्रारंभिक कीमत  , The initial deposit or collateral required to enter into a futures contract.

Delivery – डिलीवरी 

फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट एक्सपायर होने पर अंडरलाइन असेट को भौतिक रूप से वितरित करने की प्रक्रिया। The process of physically delivering the underlying asset when a futures contract expires.  अगर आपने किसी स्टॉक का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट लिया है ,और एक्सपायरी पर आपको उसे स्टॉक में रूपांतरित करने को डिलीवरी कहते है |

What is Basis ? 

बेसिस = फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट की कीमत – स्टॉक की कीमत

  • स्टॉक की कीमत स्टॉक मार्केट में हो रहे खरेदी और ब्रिक्री पर निर्भर होती है |
  • स्टॉक का ट्रेडिंग जिस मार्केट में होता है उसे स्पॉट मार्केट (Spot Market ) कहते है | स्पॉट मार्केट को कॅश मार्केट भी कहते है
  • फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट के व्यवहार जिस मार्केट में होते है उसे फ्यूचर मार्केट या डेरीवेटिव मार्केट कहते है |
  • फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट में टाइम वैल्यू ( Time Value ) होने के कारन फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट की कीमत स्पॉट मार्केट के कीमत से ज्यादा होनी चाहिये लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता | ये सब डिमांड और सप्लाई पे निर्भर होता है | यहाँ स्पॉट मार्केट की कीमत और फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट की कीमत में जो अंतर तैयार हो जाता है उसे बेसिस कहते है |
  • बेसिस अगर पॉजिटिव होता है तो उसे प्रीमियम कहेंगे और ये बुलिशनेस का संकेत होता है |
  • अगर बेसिस नेगेटिव होता है तो उसे डिस्काउंट कहेंगे और ये बेयरिशनेस का संकेत होता है

 

Cost Of Carry क्या है ?

फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट को एक्सपायरी डेट होती है, टाइम वैल्यू फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट में बढ़ जाती है , इसके कारन इंडेक्स या स्टॉक के प्राइस से ज्यादा               उसके फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू होती है जिसे इसको कॉस्ट ऑफ़ कैरी कहते है |

स्ट्राइक प्राइस (Strike Price) – स्ट्राइक प्राइस भी index की Value के आधार से बनते है , निफ़्टी ऑप्शन में दो स्ट्राइक प्राइस के बीचमे 50 point का फरक होता |और बैंक निफ़्टी में दो स्ट्राइक प्राइस में 100 points का डिफरन्स होता है |

लॉट साइज (LOT SIZE)
डेरीवेटिव मार्केट में एक शेयर का व्यवहार नहीं होता है , यहाँ उसी स्टॉक के अनेक शेयर को मिलकर एक कॉन्ट्रैक्ट बनता है और उस कॉन्ट्रैक्ट को मार्केट में ट्रेड किया जाता है | कॉन्ट्रैक्ट में शेयर्स की संख्या एक्सचेंज / SEBI नियम के अनुसार निर्धारित करता है | उसे लॉट साइज कहते है | Nifty one Lot Size – 50  and BankNifty one Lot Size – 25

टिक साइज (Tik Size ) –  टिक साइज = फ्यूचर या ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदने या बेचने के लिए जो कम से कम प्राइस लगा सकते है उसे टिक साइज कहते है , इंडेक्स ऑप्शन में यह पांच पैसे होती है

लॉन्ग पोजीशन  Long Position – – भविष्य में अगर स्टॉक या इंडेक्स की कीमत बढ़ने वाली है तो उसे पहले से ख़रीदा जा सकता है उसे ही लॉन्ग पोजीशन कहते है

शार्ट पोजीशन  Short Position  – भविष्य में अगर स्टॉक या इंडेक्स की कीमत घटने वाली है तो उसे पहले से बेचा जाता है उसे ही शार्ट पोजीशन बनाना कहते है |

  Option Contract  के प्रकार

स्टॉक या इंडेक्स की मार्केट प्राइस और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की स्ट्राइक प्राइस ( भविष्य में अपेक्षित प्राइस ) के अनुसार ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के तीन प्रकार पड़ते है |

In The Money – ITM – इन द मनी

At The Money – ATM – एट द मनी

Oot Of Money – OTM – आउट ऑफ़ मनी

 

 

 ITM,ATM,OTM को विस्तार से समजते है |

 

स्टॉक या इंडेक्स की कल की क्लोजिंग प्राइस 16700 ( उदाहरण के लिए हम Nifty 50 इंडेक्स की वैल्यू लेते है )

 

 

AT THE MONEY – ATM – एट द मनी क्या होता है ?

At the money – ATM इस प्रकार में स्टॉक या इंडेक्स की प्राइस और स्ट्राइक प्राइस दोनों एक ही होते है , जैसे अगर निफ़्टी अभी 16700 पे है तो ,16700 call भी ATM होता है और 16700 का Put भी ATM होता है|  ,ATM CALL –  16700 CALL ,  ATM PUT   – 16700 PUT

Condition -1

अगर निफ़्टी 16700 से आगे जाके 16755 तक जाता है तो क्या होगा ?
16700 का call जो  ATM था  वो अभी  ITM – इन द मनी हो जायेगा |
16700 का Put – ATM था वो अभी  OTM – आउट ऑफ़ मनी हो जायेगा |

Condition -2

अगर निफ़्टी 16700 से निचे की तरफ जाता है 16645 की तरफ जाता है तो क्या होगा ?

16700 का call जो  ATM था  वो अभी OTM – आउट ऑफ़ मनी हो जायेगा |

16700 का Put – ATM था वो अभी  ITM – इन द मनी हो जायेगा |

 

IN THE MONEY – ITM – इन द मनी क्या होता है ?

इंडेक्स की कल की क्लोजिंग प्राइस अगर 16700 है | ITM CALL –  16650  CALL  ,  ITM PUT   – 16750  PUT

 

Condition -1

अगर निफ़्टी 16700 से आगे जाके 16755 तक जाता है तो क्या होगा ?

ITM CALL –  16650  CALL  वह आईटीएम हे रहेगा |

ITM PUT   – 16750  PUT  वह एटीएम हो जायेगा |

Condition -2

अगर निफ़्टी 16700 से निचे की तरफ जाता है 16645 की तरफ जाता है तो क्या होगा ?

ITM CALL –  16650  CALL  वह एटीएम हो जायेगा |

ITM PUT   – 16750  PUT  वह आईटीएम हे रहेगा |

 

OUT OF  MONEY – ITM – इन द मनी क्या होता है ?

अगर NIFTY इंडेक्स की कल की क्लोजिंग प्राइस  16700 है | OTM CALL –  16750  CALL  , OTM PUT –  16650  PUT

Condition -1

अगर निफ़्टी 16700 से आगे जाके 16755 तक जाता है तो क्या होगा ?

OTM CALL –  16750  CALL  वह (ATM) एटीएम हो जायेगा |

OTM PUT –  16650  PUT वह OTM हे रहेगा |

 

Condition -2

अगर निफ़्टी 16700 से निचे की तरफ जाता है 16645 की तरफ जाता है तो क्या होगा ?

OTM CALL –  16750  CALL  वह OTM हे रहेगा |

OTM PUT –  16650  CALL  वह (ATM)एटीएम हो जायेगा |

 

 

Option Greek और इसका Option Trading पर इसका प्रभाव

 

  • मार्केट की अलग- अलग  न्यूज़ , इवेंट्स  जैसे चुनाव,बजट,कम्पनी फाइनेंसियल रिजल्ट्स ,इनका स्टॉक /इंडेक्स की प्राइस पर प्रभाव पड़ता है |
  • ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के प्रीमियम यानी प्राइस अपने अंडरलाइन एसेट ( स्टॉक /इंडेक्स ) के साथ बढ़ती और घटती है ,ऑप्शन प्राइस में टाइम की भी वैल्यू जोड़ी जाती है जो हमें ऑप्शन ग्रीक सहायता से समज आता है |
  • ऑप्शन Greeks ये फार्मूला से बनते है ,जिसका उपयोग Option contract Price पर पड़ने वाले प्रभाव  को समझना है , और उसका उपयोग आप Option Trading में सही कॉन्ट्रेक्ट और सही कीमत चुनने के लिए कर सकते है |

 

Option Greeks types

  • Delta –      डेल्टा  – Δ –  Important for trading
  • Gamma –  गामा  – γ
  • Vega  –       वेगा
  • Theta  –    थीटा  – θ  – Important for trading
  • Rho  –        रो    –   ρ

 

 

What is Delta ?  डेल्टा क्या होता है ?

  • स्टॉक /इंडेक्स की प्राइस या वैल्यू को Underlying Asset कहते है जिससे ऑप्शन का प्रीमियम बनता है | जब stock /Index की Value बदलती है तो उसका सीधा असर ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के primium पर पड़ता है , उसको डेल्टा की मदत से समजते है इसको हम उदहारण से समझते है |
  • जब stock /Index की कीमत 1 पॉइंट से बढती है उस टाइम ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू 0.5 बढ़ती है ऐसे समय उस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा 50 % होता है , मतलब stock /Index 10 पॉइंट से बढ़ेगा तब ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट 5 पॉइंट् ही बढ़ेगा |
  • निफ़्टी अभी 17000 और अपने 17000 CALL को ख़रीदा है उसका प्रीमियम 70 RS है   अगर निफ़्टी 17050 तक जाता है उसी समय आपका 17000 CALL का प्रीमियम 85 RS होगा |

एक्सपायरी होने पर जो भी call या put ITM होते है उनका प्राइस 100 % पास होता है , और जो call या put OTM होते है वह 0 हो जाते है|

ITM, ATM, OTM and Delta Relation – ITM ,ATM ,OTM और डेल्टा का संबंध

  • IN THE MONEY – ITM –  0.8   डेल्टा value
  • AT THE MONEY – ATM –  0.6  डेल्टा value
  • OUT OF MONEY – OTM – 0.3  डेल्टा value

 

 

What is Gamma ? गामा क्या होता है ?

  • Gamma भी एक ऑप्शन Greek है |
  • इसका ट्रेडिंग के लिए उतना उपयोग नहीं होता है , लेकिन आपको जानकारी होनी चाहिए |
  • Gamma एक tolerance की तरह होता है , जब stock /Index की कीमत 1 पॉइंट से बढ़ता है , और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू 0.5 बढ़ती है जैसे हमें ऊपर देखा | और Gamma 0.02 है इसका मतलब ,ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की वैल्यू 0.5- 0.02 = 0.48 या 0.5 + 0.02 = 0.52 हो सकती है|

 

What is Theta ?  थीटा क्या होता है ?

  • थीटा से हम Option contract Expiry को बचा हुवा समय और ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट के primium ( Fair Price )पर पड़ने वाला असर को जान सकते है |
  • Theta की वैल्यू नेगेटिव होती है , Option contract को Expir के लिए बचा हुवा समय महत्वपूर्ण होता है |
  • जैसे जैसे Option contract की Expiry नजदीक आती है वैसे वैसे Option contract के प्रीमियम कम होते है |
  • थीटा का उपयोग Option Selling करने वालो को ज्यादा फायदा होता है |

 

ऑप्शन ट्रेडिंग के टॉप 3 उपयोग क्या है ?

What is Top 3 Use use of option contract with example

 

What is Speculation (स्पेकुलेशन)

  • स्पेकुलेशन मतलब अनुमान लगाना , और अनुमान लगाने वाले को स्पेकुलेटर (speculator ) कहते है |
  • मार्केट की दिशा यानि ट्रेंड (Trend) के बारेमे अनुमान लगाकर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से व्यवहार (Trade -ट्रेड ) होते है |
  • मार्केट अगर ऊपर जानेवाला है तो पहले से ही कॉल ऑप्शन खरीदकर और अगर मार्केट निचे जानेवाला है तो पुट ऑप्शन खरीदकर मुनाफा कमाया जाता है |
  • लेकिन मार्किट की दिशा या ट्रेंड पता होने से काम नहीं होता है उसके लिए और अधिक जानकारी होनी जरुरी है जैसे , Support & resistance , Volatility , मार्केट एक लेवल तक पहुँचने का समय इसका भी अनुमान लगाना आना चाहिए ,इसे ट्रेडिंग भी कहते है |

 

What is Hedging  (हेजिंग)

  • Hedging is risk reduction strategy
  • हेजिंग तकनीक का उपयोग संरक्षण (Protect) के लिए किया जाता है , हेजिंग तकनीक बिमा पालिसी जैसा काम करती है |
  • बिमा पालिसी आपको और आपके परीवार को संरक्षण प्रदान करती है , वैसे ही हेजिंग तकनीक आपके पोर्टफोलियो को संरक्षण प्रदान करता है |
  • अगर अपने लंबी अवधि के निवेश ( longterm Invesment ) के लिए स्टॉक या शेयर्स ख़रीदे है , और मार्केट में कुछ कारण से निचे जा सकता है , लेकिन आपको आपके शेयर्स बेचने नहीं है तो आप उसी स्टॉक या निफ़्टी इंडेक्स (Nifty 50 ) पुट ऑप्शन खरीदकर उसे हेज (Protect) कर सकते है | इस तरह आप अपने पोर्टफोलियो को हेजिंग तकनीक से संरक्षण प्रदान कर सकते है |
  • मार्केट में म्यूच्यूअल फंड , बड़े इन्वेस्टर ,या बड़ी कंपनिया जिनके इन्वेस्मेंट बहुत ज्यादा होती है वो हमेशा हेजिंग तकनीक का उपयोग करते है |
  • हेजिंग तकनीक से कम कीमत में बड़ी रिस्क मैनेज की जा सकती है |
  • लेकिन अभी बहुत सारे लोग इसे ट्रेडिंग में भी इस्तमाल करते है , जिससे ट्रेडिंग में भी रिस्क को मैनेज किया जाता है |

What is Arbitrage ( आर्बिट्रेज )

  • कभी कभी उसी समय एक ही कंपनी के शेयर की कीमत दो जगे ( nifty /sensex ) कम ज्यादा होती है , जहा कम है वहासे खरीदकर जाया ज्यादा है वंहा पे बेचकर आप मुनाफा कमा सकते है इसेही Arbitrage – आर्बिट्रेज कहते है |
  • मार्केट में ऐसा मौका बहुत कम बार और कम समय के लिए आता है | Demand & Supply में होनेवाले अचानक बदलाव के कारन मार्केट में कीमतों पर असर होता है और इसका फायदा उठाकर मुनाफा कमाया जाता है |

 

 Participants in Options market- ऑप्शन मार्केट में भाग लेनेवाले 

 

Call Option Contract buyer – Call Option Holder – Long Position
कॉल ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट बायर – कॉल ऑप्शन होल्डर – लॉन्ग पोजीशन

Call Option Contract Seller – Call Option Writer – Short Position
कॉल ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट सेलर – कॉल ऑप्शन राइटर – शार्ट पोजीशन

Put Option Contract buyer – Put Option Holder – Long Position
पुट ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट बायर – पुट ऑप्शन होल्डर – लॉन्ग पोजीशन

Put Option Contract Seller – Put Option Writer- Short Position
पुट ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट सेलर – पुट ऑप्शन राइटर – शार्ट पोजीशन

 

 

What is Impact Cost of Stocks  इम्पेक्ट कॉस्ट क्या होता है ?

 

Imapct cost of option and stock

 

 

What is Impact cost of stocks? 

 

  • What is impact cost with example?  – Imapct Cost को हम एक उदहारण से समजते है , स्टॉक मार्केट में सेलर और बायर की वजह से स्टॉक की कीमत कम ज्यादा होती रहती है ,
  • एक ABC कंपनी है उसके स्टॉक की कीमत अभी 200 Rs चल रही है |
  • एक खरीदने वाला आता है उसे 1 लाख शेयर्स खरीदने है लेकिन 199 से 200 इसी बीचमे उसे चाहिए उसी वक्त ABC कंपनी के शेयर्स बेचने वाला आता है उसे 1. 5 लाख शेयर्स बेचने है | लेकिन 200 से 202 के बीचमें |तो ABC कंपनी के स्टॉक की कीमत 200 लेकर 201 तक ही बढ़ेगी ,
  • लेकिन उसी वक्त अगर कोई खरीदने वाला अत है जिसे 10 लाख शेयर्स खरीदने है तो क्या होगा , शेयर्स की कीमत और ज्यादा बढ़ेगी क्यू की सप्लाई कम हुवा और डिमांड बढ़ गयी ,
  • अगर ये खरीदने वाला नहीं आता तो ABC कंपनी के स्टॉक का ट्रेड एवरेज प्राइस मतलब 201 पे सब ट्रेड पुरे हो जाते और प्राइस 201 से आगे बढ़ता ही नहीं|

 

What is Stock Liquidity ? 

1. 5 लाख शेयर्स का ट्रेड हुवा डिमांड बढ़ने के कारन स्टॉक की कीमत 200 से 201 हो गयी इसही इम्पेक्ट कॉस्ट कहते है |
इसका मतलब ऐसे स्टॉक में liquidity ज्यादा है , अगर स्टॉक की कीमत 1. 5 लाख शेयर्स के ट्रडिंग होने पर में ज्यादा बदलाव आता तो यह स्टॉक में कम लिक्विडिटी ( liquidity ) है ऐसा अनुमान लगता है |

 

 future and options Impact cost

अगर हम डेरीवेटिव सेगमेंट यानि future & Option की बात करते है तो उसमे आप हमेशा वर्तमान महीने यही जो महीना चल रहा है उसके कॉन्ट्रैक्ट में ज्यादा कारके ट्रेड करे क्यू की वर्तमान महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ज्यादा liquidity के चलते बेचने के प्राइस में ज्यादा अंतर नहीं अत है
90 % ट्रेड स्टॉक /इंडेक्स में वर्तमान महीने के कॉन्ट्रैक्ट में होते है , और लास्ट वीक में अगले महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड बढ़ने लगते है |

 

 

Volume और open interest  ट्रेडिंग के लिए क्या महत्वपूर्ण है ?

 

Volume and open interest which is Important key for Trading

Volume (वॉल्यूम) – जब भी स्टॉक मार्केट में स्टॉक ,ऑप्शन या फ्यूचर में ट्रेडिंग होती है , मतलब स्टॉक या ऑप्शन कॉन्ट्रेक्ट या फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट को ख़रीदा और बेचा जाता है तब वॉल्यूम बनता है , जैसे जैसे ट्रेडिंग बढ़ता है वैसे वॉल्यूम भी बढ़ता जाता है | Volume कब बढ़ता है – जब buyer या Seller ट्रेडिंग करते है , तब तब वॉल्यूम बढ़ता , दिन भर जैसे ट्रेड होते रहेंगे वैसे वॉल्यूम बढ़ता रहेगा

Open interest (ओपन इंटरेस्ट) – ओपन इंटरेस्ट वॉल्यूम से अलग होता है ,कोई भी ट्रेड पूरा होने के लिए आपको options and futures contracts पहले खरदीना पड़ता है , और मुनाफा या घाटा होने पर आपको उसे बेचना पड़ता है, जब ख़रीद कर उसेही बेचते हो तो एक ट्रेड पूरा होता है |
लेकिन आपने options या futures contracts ख़रीदा है और आपने उसे अभी बेचा नहीं है मतलब आपका ट्रेड अभी ओपन है ,आपके जैसे बहोत लोग होंगे जिन्होंने अभी ख़रीदा है मगर उसे बेचा नहीं है , जितने लोगोने बस खरीदा है मतलब उनकी पोजीशन अभी ओपन है ,इसीको ही ओपन इंटरेस्ट (Open Interest ) कहते है |ओपन इंटरेस्ट” उन कॉन्ट्रेक्ट या ट्रेड की संख्या को दर्शाता है जो सक्रिय (active ) हैं |

 

ओपन इंटरेस्ट (Open Interest ) के बारेमे अधिक जानकारी 

In Derivative Market Buyer of options aur  futures contracts must have to Sell contracts till expiry  and options aur  futures contracts seller must have to buy contracts till expiry at the end of month on last day of expiry all open intersr will be Zero .

डेरीवेटिव मार्केट में ऑप्शन या फ्यूचर कॉन्ट्रेक्ट खरीदने वालो को बेचना पड़ता है और बेचने वालो को खरीदना पड़ता है , महीने के आखरी गुरुवार सब कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायर हो जाते है और ओपन इंटरेस्ट शुन्य हो जाता है | और अगले महीने के कॉन्ट्रेक्ट में खरेदी और बिकवाली शुरू होती है | डेरीवेटिव मार्केट में वॉल्यूम से कही ज्यादा ओपन इंटरेस्ट का महत्व होता है |

 

How to calculate open interest in future and options contracts ? 

मार्किट में जब treding hours में कॉन्ट्रैक्ट की खरेदी ,बिकवाली होती है , उसका असर ओपन इंटरेस्ट पर पड़ता है , और इसकी जानकारी हमें मार्केट बंद होने के बाद जो NSE से डाटा मिलता है उससे पता चलता है की ओपन इंटरेस्ट कहा ज्यादा और कहा काम हुवा है |

यह आपको मार्किट बंद होने के बाद कुछ घंटो के बाद अपडेट की जाती है उसे आप निचे दी गयी लिंक से रोज देख सकते है और अपना अनुमान लगा सकते है |

  Historical Contract-wise Price Volume Data

 

Above Terms are commonly used in futures and options Trading in India and Global Market 

 

 

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